Friday 19 August 2011

yaad - e - maqbool

कैनवस पर उकेरते लकीरें / हिनहिनाते होर्सेस बनाते - चचा   मकबूल ! आपके रंगों का वह रंग पात्र कहाँ है ? सिंघवाहिनी दुर्गा रचते | रंग  नहीं / काल को मथते | गाँधी हो , मदर हो या इंदिरा | टाइगर ऑन द लेडी / गजगामिनी गढ़ते - चचा मकबूल ! आपके ब्रश की हर थिरकन यहाँ है | चश्मा , झोला / रुई से सफ़ेद बाल | वो "लुक" / प्रगति शीलता का वह अंदाज - नंगे पैर / वहां का वहां है| इन्दोरी महक से सराबोर | सिनेमा के पोस्टर बनाते / देव लालीकर की वीथिका में  याद है , आज भी - भूत लिंगम के रचाव | समय की नब्ज पर / ब्रश से उपजा सिंगल स्ट्रोक लहके / या बीता हुआ खजू राहो में  / भरत नाट्यम में थिरके , घूँघरू की छन छन में  भी स्वर तो वही है | फिर ज़ला वतन कहाँ है ? आ भी जाओ चचा ! भीड़ तंत्र - भेड़तंत्र  यहाँ है |   

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